ईद अल-अद्हा पैगंबर इब्राहिम की आज्ञाकारिता और अल्लाह में उनके पूर्ण विश्वास का उत्सव है। यह बलिदान के महत्व को सिखाता है — शाब्दिक रूप से (Shabdik Roop Se) पशु बलिदान के माध्यम से और प्रतीकात्मक रूप से (Prateekatmak Roop Se) भौतिक आसक्तियों को त्यागकर आध्यात्मिक उन्नति (Adhyatmik Unnati) के लिए।
यह पर्व मुसलमानों को उनकी सांसारिक इच्छाओं और लगाव को छोड़ने की तैयारी के महत्व की याद दिलाता है। साथ ही, यह दूसरों, विशेष रूप से जरूरतमंदों (Jaruratmand), के साथ आशीर्वाद बांटने के कार्य पर भी प्रकाश डालता है। कुर्बानी (पशु बलिदान) अल्लाह की इच्छा के प्रति समर्पण के भाव को प्रतीकित करती है, और बलिदान का मांस परिवार, दोस्तों, और गरीबों में बांटा जाता है, जिससे सामुदायिक बंधन (Samudayik Bandhan) मजबूत होते हैं।

ईद अल-अद्हा कब मनाई जाती है?
Eid al-Adha Kab Manayi Jati Hai?
ईद अल-अद्हा इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अंतिम महीने ज़ु अल-हिज्जा (Dhu al-Hijjah) के 10वें दिन मनाई जाती है। यह तिथि हज (Hajj) तीर्थयात्रा के समापन के साथ मेल खाती है। चंद्र चक्र और चांद दिखाई देने के आधार पर हर साल यह तारीख बदलती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में लगभग 10-11 दिन पीछे खिसकती है।
उदाहरण के लिए, 2025 में ईद अल-अद्हा के 6 या 7 जून के आसपास होने की संभावना है, हालांकि सटीक तारीख स्थानीय चांद दिखाई देने पर निर्भर करेगी। उत्सव आमतौर पर 3-4 दिनों तक चलता है, जिन्हें तशरीक के दिन (Tashreeq ke Din) कहा जाता है (ज़ु अल-हिज्जा के 10वें से 13वें दिन तक), जिसमें 10वां दिन बलिदान और नमाज का मुख्य दिन होता है।
उत्सव का विवरण: https://www.timeanddate.com/holidays/muslim/eid-al-adha
Utsav ka Vivaran
1. नमाज़ (सालात अल-ईद):
Namaz (Salat al-Eid):
ज़ु अल-हिज्जा के 10वें दिन की सुबह, मुसलमान विशेष ईद की नमाज के लिए सामूहिक जामात (Jamaat) में एकत्रित होते हैं, जो ईद अल-फित्र के समान होती है। यह सामूहिक उपासना (Upasana) का क्षण है, जहां मुसलमान अल्लाह की कृपा के लिए प्रशंसा (Prashansa) करते हैं और क्षमा (Kshama) मांगते हैं।
2. कुर्बानी (पशु बलिदान):
Qurbani (Pashu Balidan):
जो मुसलमान इसे वहन कर सकते हैं, वे कुर्बानी करते हैं — यानी भेड़, बकरी, गाय, या ऊंट जैसे पशु का बलिदान। बलिदान का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है:
एक हिस्सा परिवार के लिए
एक हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए
एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए
यह बंटवारा सुनिश्चित करता है कि कम भाग्यशाली लोग भी ईद के आशीर्वाद में शामिल हो सकें।
3. उत्सव और पारिवारिक समागम:
Utsav aur Parivarik Samagam:
परिवार अपने सबसे अच्छे कपड़ों में सजते हैं, एक-दूसरे को गर्मजोशी से अभिवादन (Abhivadan) करते हैं, और बलिदान के मांस से तैयार भोजन साझा करते हैं। कबाब, बिरयानी, और स्टू जैसे विशेष व्यंजन (Vyanjan) इस उत्सव में आम हैं। ईद अल-अद्हा हज तीर्थयात्रा के अंत का भी प्रतीक है, जो वैश्विक मुसलमानों को एकता और साझा विश्वास (Vishwas) के सूत्र में बांधता है।
ईद अल-फित्र और ईद अल-अद्हा के बीच मुख्य अंतर और समानताएं
Eid al-Fitr aur Eid al-Adha ke Beech Mukhya Antar aur Samantayein
1. समय:
Samay:
ईद अल-फित्र: रमज़ान के महीने के बाद (शव्वाल की 1 तारीख को) मनाई जाती है, जो उपवास (Upavas) के अंत का प्रतीक है।
ईद अल-अद्हा: ज़ु अल-हिज्जा के 10वें दिन, हज के समापन के बाद मनाई जाती है।
2. उद्देश्य:
Uddeshya:
ईद अल-फित्र: उपवास के अंत और आध्यात्मिक शुद्धिकरण (Shuddhikaran) की प्राप्ति का उत्सव।
ईद अल-अद्हा: पैगंबर इब्राहिम के अपने पुत्र को अल्लाह की आज्ञा में बलिदान करने की इच्छा का स्मरण (Smaran), और समर्पण के महत्व की याद।
3. अवधि:
Avadhi:
ईद अल-फित्र: आमतौर पर एक दिन का उत्सव, हालांकि उत्साह कुछ दिनों तक चल सकता है।
ईद अल-अद्हा: 3-4 दिनों तक चलने वाला लंबा उत्सव, जिसमें मुख्य दिन 10वां होता है।
4. साझा प्रथाएं:
Sajha Prathayein:
दोनों ईद में विशेष नमाज़, दान (ज़कात अल-फित्र और ज़कात अल-अद्हा), पारिवारिक समागम, और कृतज्ञता (Kritagyata) की अभिव्यक्ति शामिल होती है। ये समुदाय, उदारता (Udarata), और उपासना पर जोर देते हैं।
निष्कर्ष
Nishkarsh
ईद अल-अद्हा, ईद अल-फित्र के साथ, पैगंबर मुहम्मद और पैगंबर इब्राहिम की शिक्षाओं से उत्पन्न हुई है। दोनों पर्व इस्लामी चंद्र कैलेंडर का पालन करते हैं, जो हर साल बदलता है, और मुसलमानों को अपने विश्वास पर चिंतन (Chintan) करने, कृतज्ञता, एकता, और उदारता व्यक्त करने का अवसर देता है। 2025 में ईद अल-फित्र मार्च के अंत में और ईद अल-अद्हा जून की शुरुआत में होने की उम्मीद है। प्रत्येक उत्सव अपनी विशिष्ट चिंतन और आनंद लेकर आता है, जो इस्लामी वर्ष के समग्र अनुभव में योगदान देता है।